जुस्तजू भाग --- 9
ए जिंदगी, एक इंटरवल तो कर।
मुझे उनको प्रपोज करना है।।।
आरूषि नाराजगी और बेबसी से अपनी तरफ़ की विंडो से बाहर भागते दृश्यों को को देखते सोच रही थी अपनी जिंदगी में आए 360° के मोड़ के बारे में। कल सुबह से अलग अलग विचारों को लड़ी में पिरोती, कभी मुस्कुरा देती कभी सिसक लेती तो कभी अनुपम के साथ को महसूस करती फिर उसके धोखे को। वह अपने आप में इतना खो गई कि कार रुकने का पता ही नहीं चला।
"उतरो, कॉफी अच्छी मिलती है यहां।"उसकी ओर का दरवाज़ा खोले अनुपम बोला।
"नहीं पीनी !! मुझे घर जाना है और अपने बच्चे से मिलना है।"
"इच्छा नहीं पूछी आपकी। अब उतरेंगी या उठाकर ले चलूं ?"
"क्या ?? जबरदस्ती है ??" आरूषि अनुपम के बदलाव से हैरान थी।
"जानता हूं, सुबह से सिर्फ कुछ कौर खाए है और कल से आज तक काम और जिंदगी के बदलावों को सहन करते थक रही हो।"
अनुपम की उसके हाथ पर पकड़ मजबूत होती महसूस हो गई उसे। वह कोई तमाशा नहीं चाहती थी। उतरकर मोटेल के अंदर चली आई। अनुपम उसे फैमिली केबिन में ले आया था। ऑर्डर प्लेस कर दिया था कॉफी और नाश्ते का। आरूषि ने उसकी तरफ़ नाराजगी से देखा। अनुपम की तरफ़ उसके होश में आने के बाद पहली बार ध्यान से देख रही थी। उसकी आंखें लाल और सूजी हुई थी। थकान, बीमारी और मानसिक तनाव उसके चेहरे पर छाया हुआ था।
"मैं सचमुच पागल हूं। भूल गई कि रात को बेहोश तेज़ बुखार में तप रहे थे। लोग और घायल इनकी प्रशंसा कर रहे थे। और भीगे कपड़ों में कौन काम करता रह सकता है !! कोई परवाह नहीं ख़ुद की, बस काम की पड़ी थी !! और अफ़सर आ गए थे न !! फिर थोड़ी देर रुक जाते। कलेक्टर है तो ऑर्डर दे देते। संभालते सब !
हां कब बने ?? मुझे तो बेरोजगार इंजीनियर बताया था न !! पता नहीं क्या क्या छुपाए बैठे हैं। मिलने दो मौका, ख़बर न ली तो !! उफ्फ, ड्राइविंग भी खुदको ही करनी थी !! पूल से दूसरी गाड़ी नहीं मंगा सकते थे !! क्यों मंगाते ?? फिर मुझ पर रौब गांठने को कैसे मिलता !! एक बार भी पूछा नहीं कि कैसी हो ?? कैसे गुजारा किया !!...... " वह पता नहीं क्या क्या सोचे जा रही थी कि अनुपम की आवाज़ ने उसे वापस वास्तविकता में ला खड़ा किया।
"कॉफी ठंडी हो रही है और गाजीपुर भी पहुंचना है। जल्दी से खतम करो। घर पर मां और मेरा लाड़ला इन्तजार कर रहे होंगे हमारा।"
"लाड़ला !! क्या किया है आपने उसके लिए ?? कितने दिन से जानते हो उसे ?? कहां थे जब उसके आने का पता चला, वह इस दुनियां में आया, वह पहली बार चला, पहली बार बोला ?? आरूषि बिफर गई।
" आपकी आंखों में देख पा रहा हूं वह सब। जानता हूं वहां नहीं था और यह भी जानता हूं कि आगे भी शायद मिस करता रहूं वह सब। पर आप है न, सब आपके दिल से पूछ लूंगा।"
यह सुनते ही आरूषि एक बार उसके प्यार को महसूस कर शरमा सी गई।
"अब चलें या और सफाई देनी पड़ेगी ?"
आरूषि फिर से वर्तमान में लौट आई। अनुपम ड्राइविंग सीट की तरफ़ बढ़ा तो आरुषि ने रास्ता रोक लिया, "आप मेरी सीट पर जाइए, अब मैं चलाऊंगी।"
"आप !!"
"हां आप बीमार हैं और मैं आपकी डॉक्टर। आपको मेरी बात माननी पड़ेगी।"
"पर आप कल सुबह से लगातार काम कर रही हैं।"
"पर बीमार तो नहीं पड़ी न!"
"नहीं, आप रास्ता नहीं जानती होंगी।"
"आप भूल रहे हैं। आपसे पहले से हूं यहां।"
"ड्राइविंग नहीं आती होगी न।"
"पहले कब बैठे हैं जो अपना फ़ैसला सुना रहे हैं ?"
"बहस घर कर लेना अभी मुझे चलाने दें। लोग भी देखने लगे हैं।"
"हां तो, यह कलक्टरी दूसरों पर झाड़ना। अभी आप मरीज़ ही है मेरे लिए। तो चुपचाप जाइए बैठिए वहां।" आरूषि अपनी नाराज़गी भूल सी गई और अपने अवतार में लौट सी गई जो अनुपम के साथ रिश्ते की पहली रात के बाद थी।
अनुपम हारकर बैठ गया। आरूषि ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। कुछ देर में ही शरीर की कमजोरी ने असर दिखाया। अनुपम पर नींद हावी हो गई। आरूषि ने महसूस होते ही उसकी तरफ़ देखा। दिल में फिर प्यार उमड़ आया। वह उसका साथ महसूस कर पा रही थी
कुछ देर में ही गाजीपुर में पहुंच गए दोनों। अनुपम जाग गया था।
"अब तो चलाने दो।"
"बैठे रहिए। बस घर का रास्ता बता दीजिए।"
"अरे, बस कीजिए। अब ठीक हूं मैं।"
"यह मैं तय करूंगी, आप नहीं।"
"अरे सुनो, सब देखेंगे तो..."अनुपम और बोल पाता इससे पहले ही आरूषि बेध्यानी में बोल पड़ी,"तो क्या हुआ ?? अपनी पत्नी के साथ शर्म आ रही है आपको ?"
"बिलकुल नहीं, मैं तो चाहता हूं कि मेरी जिन्दगी की गाड़ी भी आप ड्राइव करें।"अनुपम हौले से बुदबुदाया।
कार बंगले पर पहुंच चुकी थी। रुकते ही प्यून ने दरवाजा खोला। पर आरूषि को देखकर हिचकिचा गया। उतरते ही आरूषि बिना कुछ कहे अंदर ऐसे चली गई जैसे कुछ नया नहीं हुआ हो।
"कार गैराज में ले जाओ।"अनुपम भी अंदर चला आया।
आरूषि ने मां और बच्चे के बारे में पूछा और सीधे उनके कमरे में चली गई।
अनुपम समझ रहा था कि आरूषि ने उसे माफ़ नहीं किया है।
"इसे कैसे समझाऊं ? अभी कुछ बोला तो पता नहीं कैसे रिएक्ट करेगी ? सुबह बात करूंगा।"अनुपम ने खाना वहीं भिजवाना सही समझा।
"जे का बात भई बिटिया। एईसन कोई आवत है भला। पहली बार आवत रहीं न ईहां ? काहे नहीं रसम रिवाज़ नाही करवाने दिए हमका ?"मां अंदर आई थी।
"मां, अभी कुछ नहीं प्लीज़। अभी मेरे लिए ही सोच लो न !"
"तो उठो, तनि खाय लियो कछु।"
"मम्मी, मम्मी, आ दई !! तहां लह गए थे ? यहां त्यूं आए हैं ? अपने धल तब दायेंदे ??" बच्चा इस सब से हैरान परेशान था।
आरूषि ने पहले अपने बच्चे को गोद में लिया और प्यार करने लगी। फिर पहले उसे खिलाया और सुला दिया।
"मां, आज इसे मेरे पास ही सोने दें और आप भी आराम करें।"
"हमाएं लाने दुसरे कमरे में सब लगवा दिए हैं, बाबू साहेब। तुम एकौ बार तनी मिल लिओ उनते।"
"हूं।"
मां चली गई।
"साहब आपको बुला रहे हैं।" तभी नौकर आकर अदब से बोला।
"आती हूं।" आरूषि का बिल्कुल मन नहीं था पर नौकर को टालना ही सही समझा।
काफ़ी देर होने पर अनुपम वहीं चला आया पर बच्चे के साथ उसे सोते देखकर लौट गया।
"सुबह देखूंगा। अब कुछ भी हो मुझसे दूर नहीं रहोगी।" अनुपम लौट गया आने वाली सुबह के इन्तजार में।
पर जिंदगी को भी इन्तजार था सुबह का। आखिर उसे भी नया खेल खेलना था।
Seema Priyadarshini sahay
06-Feb-2022 05:39 PM
वाह बहुत खूबसूरत लिखा सर
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Sandhya Prakash
25-Jan-2022 08:07 PM
आखिर मुद्दतो बाद कुछ अच्छा हुआ अनुपम के जीवन में...
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Shaqeel
24-Dec-2021 02:34 PM
Good
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Ajay
29-Dec-2021 11:36 PM
Thanks
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